पुस्तक परिचर्चा
बलविंद्र सिंह बलि |
महासचिव, दलेस |
दलित लेखक संघ द्वारा गत शनिवार दिनांक 22 जून 2024 को गूगल मीट पर ऑनलाइन माध्यम से डॉ. सुमन धर्मवीर की पुस्तक “प्रकृति व स्त्री विमर्श“ पर परिचर्चा का आयोजन किया गया।
प्रस्तुत पुस्तक दिल्ली स्थित आर के पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रिबुटर्स द्वारा प्रकाशित हुई है। कार्यक्रम में लेखिका ने अपना मंतव्य स्पष्ट करते हुए बताया कि जीवन में पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने के साथ-साथ उनका प्रकृति प्रेम जारी रहा तथा पर्यावरण के प्रति सबको सजग करने हेतु वे सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय रहीं। उनके इस विचार ने कि प्रकृति और स्त्री दोनों ही निस्वार्थ भाव से देने वाली होती हैं; उन्हें इस विषय पर लेखन में प्रवृत्त किया।
संचालक बलविंद्र सिंह बलि ने पुस्तक की मूल रूपरेखा को सभी के समक्ष रखा। उन्होंने बताया कि पुस्तक अपने भीतर आठ कहानियाँ, ग्यारह कविताएँ, तीन नाटक और एक लेख समाहित किये हुए हैं। उन्होंने ‘कुसुम’ शीर्षक वाली कहानी द्वारा लेखिका के संघर्ष की ओर ध्यान आकृष्ट किया। उन्होंने ये भी ‘क़ाली चिड़िया के बच्चे’ नामक कहानी में लेखिका द्वारा उजागर की गई मानवीय संवेदनाओं द्वारा समाज को प्रकृति के निकट लाने का संदेश निहित है।
मुख्य वक्ता सुनील पंवार ने लेखिका की कहानियों का विश्लेषण करते हुए बताया कि हालांकि डॉ. सुमन जी ने महत्वपूर्ण विषयों को अपनी लेखनी में स्थान दिया है; लेकिन वे उनके साथ न्याय नहीं कर पाई हैं। उनकी कहानियाँ बार-बार आत्मकथात्मक शैली में परिवर्तित हो जाती हैं,जिससे पाठक भ्रमित हो जाता है। सुनील पंवार आगे कहते हैं कि लेखक को चाहिए कि वह सभी पात्रों को स्वयं अनुभव करे तभी कहानी को भटकाव की स्थिति से बचाया जा सकता है। अपने ऑनलाइन संदेश में डॉ. सरोज कुमारी ने सुनील पंवार द्वारा पुस्तक के गंभीर विश्लेषण को सराहा।
इस परिचर्चा में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की प्रोफेसर रह चुकी डॉ कश्मीरी बौद्ध द्वारा की गई समीक्षा को भी स्थान दिया गया जिसमें उन्होंने विस्तार से लेखिका द्वारा रचित सभी विधाओं पर अपनी सकारात्मक टिप्पनियाँ दर्ज की हैं। उन्होंने डॉ. सुमन की रचनाओं को सामाजिक और धार्मिक विद्रूपताओं का प्रकटिकरण की संज्ञा दी है।
उपन्यासकार डॉ. राजकुमारी ‘राजसी’ ने प्रस्तुत पुस्तक में युक्त कविताओं का विवेचन करते हुए उनके शब्द प्रयोग, व्याकरण और सौंदर्य संबधी त्रुटियों के बारे में अवगत कराया। उन्होंने पुस्तक में निहित विभिन्न विधाओं की रचनाओं की ओर ध्यान दिलाते हुए इसे ‘विधाओं की खिचड़ी’ कहकर संबोधित किया। सभा में उपस्थित जावेद आलम ने डॉ. राजकुमारी के विचारों से सहमति प्रकट की।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में हीरालाल राजस्थानी ने दलित समाज में महिलाओं की विकट परिस्थितियों की ओर सभा का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि स्त्रियाँ इस प्रकार की कठिन्ताओं से संघर्ष के बाद भी कोई रचना कार्य कर पाती हैं तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए।
उन्होंने जाति भेद के उन्मूलन और मानव धर्म को प्रतिष्ठित करने वाली कहानियों की रचना करने के लिए लेखिका को बधाई दी। अपने वक्तव्य में उन्होंने स्पष्ट किया कि जिस प्रकार शिक्षक कठोर शब्दों द्वारा अपने छात्र को अधिक सक्षम बनाता है; उसी प्रकार दलेस का मंच नवोदित लेखकों को निखरने का अवसर प्रदान करता है। लेखकों को आलोचकों की कठोर टिप्पणियों को सकारात्मक रूप में स्वीकार करना चाहिए।
इस परिचर्चा में देश के विभिन्न क्षेत्रों से साहित्यकारों, रंगकर्मियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। प्रेमलता मुरार, देवसाक्षी प्रकाशन, सुनीता राजस्थानी, तेजपाल तेज, सरिता संधू, श्याम निर्मोही, मुकेश मिरोठा, मंजू रानी, चितरंजन गोपे, भीम भारत भूषण, दीपा कैम्वाल, साधना कनौजिया, श्रीलाल बौद्ध, राजेश पाल, नेत् राम ठगेला, सुरेश मुले, आर पी सोनकर, जगदीश पंकज, खन्ना प्रसाद अमीन, शंभु भट केशरी, प्रदीप और एम इंगोले जैसे नामचीन महानुभावों ने उपस्थित होकर इस आयोजन की शोभा में अभिवृद्धि की।
बलविंद्र सिंह बलि
महासचिव, दलेस
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बहुत शानदार कार्यक्रम रहा। सभी सदस्यों व लेखिका को हार्दिक शुभकामनाएं।
सुनील जी बहुत बहुत धन्यवाद
दलित लेखक संघ द्वारा साहित्यसेवा में किया गया यह एक उल्लेखनीय कार्य है। ऐसी सार्थक एवं निष्पक्ष चर्चाओं के लिए सभी को शुभकामनाएं।
चर्चा के लिए साहित्यकार संघ को व सभी को बहुत बहुत धन्यवाद