पुस्तक समीक्षा
पुस्तक:- एक कप चाय और तुम
कहानीकार:- सुनील पंवार
समीक्षक:- डॉ. राजकुमारी ‘राजसी’
प्रकाशन- सृष्टि प्रकाशन चंडीगढ़
मूल्य:- 150 रूपए
राजस्थान का हनुमानगढ़ जिला जिसकी खासियत ये कि यहां प्राचीन सरस्वती नाम से प्रचलित नदी वर्तमान समय में घाघर नाम से प्रवाहित हो रही है।पश्चिम में कालीबंगा सभ्यता का विकास एवम् राजस्थान हरियाणा पंजाब की सीमा से सटा क्षेत्र है।राजस्थान की सबसे बडी नहर परियोजना इंदिरा गाँधी नहर परियोजना,भाखड़ा नहर भी इसी मरुभूमि पर स्थित है। जिला हनुमानगढ़ के आंचल रावतसर में 14 अगस्त 1986 में कथाकार सुनील पंवार जी का जन्म हुआ। निजी जीवन में आर्थिक, सामाजिक विषम परिस्थितियों में जीवनयापन करते हुए अपनी साहित्यिक रुचि को कभी कम नहीं होने दिया,उसी के परिणामस्वरूप उनकी गद्य विधा के रूप में ‘एक कप चाय और तुम” उनका प्रथम कथा – संग्रह पाठकों के समक्ष है। वो लेखन के क्षेत्र में पत्र-पत्रिकाओं में समकालीन गम्भीर विषयों पर लेखन कर एवम् अपनी लघु आकार कथाओं के रोचक संवादों के प्रभावशाली लेखन से साहित्य
क्षेत्र में शनै- शनै अपनी पहचान बना रहें हैं।कोविड 19 के इस दौर में जहां, मानसिक तनाव,बेरोज़गारी,भूखमरी, नीरसता जैसी समस्याओं से मनुष्य जूझ रहा था उन्होंने लेखन के क्षेत्र में लेखन, पाठन के प्रति आकर्षण पैदा किया।अपनी विवेकी क्षमताओं के बल पर समकालीन मुद्दों पर तथ्यपरक विश्लेषण से लोकप्रियता हासिल करते गए।लेखकीय विवेचन,विश्लेषण,विषयोंन्मुखता व्यक्तित्व का निर्माण करती है। वास्तविक घटनाओं,स्मृति आधारित दृश्यों को बड़ी आत्मीयता के साथ कथा रूप में का प्रणयन किया गया।l रचनाकार का तटस्थता से पर्यवेक्षण, दुर्बलताओं की स्वीकृति निजी विशिष्टताएं बताती हैं। आंचलिक परिवेश में लिखी कथाएं भावोद्रेक लिए हैं, जीवन के आरम्भिक दौर से उनका सामना विकट,विषम परिस्थितियों से जीवन के कटु अनुभवों रहा। इसी अकुलाहट,सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक,अनसुलझे प्रश्नों का प्रतिरूप उनकी कहानियों में विद्यमान है।
कथा संग्रह की प्रथम कहानी "आख़िरी कॉल"की कथावस्तु फ्लैश बैक शैली में चलती है।रोचकता,रोमांच विवरणात्मकता, कथानक का सघन संगठन कहानी की विशिष्टता है।मुख्य पात्र सन्नी काल्पनिक आवाज़, एकाकीपन,कथा के काल्पनिक धरातल में नायिका को साकार रूप देते हुए एक ही कमरे के वर्तुल घेरे से संदर्भित घटनाओं में दम तोड़ देता है।कहानी इतनी रहस्यमयता,गूढता के आवरण में लिपटी है कि अंत तक पाठक के समक्ष भेद नहीं खुल पाता कि प्रस्तुत घटनाक्रम का काल्पनिक रूप में चित्राकंन हो रहा है।समुचित दृश्य, वातावरण सजीव,यथार्थ चित्र प्रत्यांकित किया गया है। कथा का केन्द्र बिंदु या उसकी रीढ़ प्रमुख रूप इस वाक्य पर आधारित हैं-"आधी रात गुजर चुकी थी और वो फोन के पास बैठा इंतजार कर रहा था,उस कॉल जो हर शाम आता था,पर आज इतनी देर कैसे हो गई? सब ठीक तो है? हज़ारों सवालों ने उसे घेर लिया था। न जाने कितनी ही बार वो अपना फोन चैक कर चुका था कि कहीं फोन तो खराब नहीं हो गया।ज्यों- ज्यों वक़्त बीत रहा था उसका सब्र भी टूटता जा रहा था।रात भर जागने से उसकी आंखें लाल हो चुकी, सिर चकराने लगा था और आंखों से अनवरत आंसू बहने लगे थे। उसने डायरी को अपनी ओर खिसकाया और आखिरी कहानी पढ़ने लगा। उसे लग रहा था जैसे वाणी उसके सामने बैठी है वो अपनी कल्पना शक्ति से उसकी मानवीय छवि बुन चुका था। वो पढ़ता गया और सिर्फ पढ़ता गया। उसकी आंखें बंद होने लगी थी सब कुछ धुंधला नजर आने लगा था,फिर भी उसने अपने आप को रुकने नहीं दिया। वो नहीं चाहता था उसकी आख़िरी कहानी पन्नों में दब कर रह जाये, उसे अपना वादा पूरा करना था जिसके लिए वह पढ़ता रहा। आख़िरकार वह कहानी की अंतिम पंक्ति में पहुंच ही गया। उसने अपना चेहरा उठा वाणी की तरफ देखा और फिर अंतिम पंक्ति को पढ़ने लगा,
“हो सके तो कभी मिलने आना वाणी! फ़िलहाल के लिए अलविदा!”वो मुस्कुराया और कुर्सी से गिर पड़ा।”कहानी यहां अपने उद्देश्य तक पहुंचने के पश्चात चर्मोत्कर्ष तक पहुंचती है।नायिका वाणी नायक सन्नी की परिकल्पना होने के बावजूद उसे अद्भुत आकर्षण दिया गया।प्रत्यक्ष रूप में पाने का जुनून नायक,अकेलेपन में कथाओं के प्रति अदम्य लगाव को दर्शाता है।’भीगी मुस्कान’ प्रेम सम्बन्धों में स्त्री की पुरुष से अधिक उम्र की अवधारणा को खंडित करती, विधवा स्त्री के शुष्क जीवन तट,स्त्री जिंदगी की विडम्बनाओं,प्रेम में उम्र की पाबन्दियों को अस्वीकृति, स्त्री जीवन में चरित्रहीनता के टेग से भयभीत स्त्री के अंतर्मन के द्वंद्व को दर्शाया है ‘एक नदी का फासला‘ कथा की मूल संवेदना चित्रकार के रंगीन चित्रों में जीवन प्रकृति को आलंबन,उद्दीपन रूप दे,जलप्लावित क्षेत्र की त्रासदी,जानमाल की हानि, भूखमरी,अभाव एवम् लघु रूप में प्रेम प्रसंग, नायिका के नायक के मध्य नदी,पहाड़ के उस पार जा चुके नायक के लंबे इंतजार,नदी की प्रेम बाध्यता, चित्रकार का पुल केनवस पर पुल बना नायिका को आशान्वित करना।सम्पूर्ण कथा नदी किनारे एक ही स्थल पर घटती है।कथा कलेवर लघुता लिए है,कुछ अधूरेपन का अहसास कराता है।चौथी कहानी ‘इश्क ऑनलाइन‘ जिसके मूल पात्र आंनद और अनन्या हैं।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य में ऑफिशियल व्यस्तता,नायिका के एकांकीपन,अन्य राज्य में अपनों से दूरी के कारण सोशल मीडिया,ऑनलाइन गेम के अत्यधिक एडिक्शन मानवीय जीवन को अपनी गिरफ्त इस प्रकार लेता है कि समयावधि का आभास भी नहीं होने देता। पात्र वीडियो गेम को इतना आत्मसात कर लेती कि काल्पनिक पारावार में गोता लगा,प्रत्यक्ष,साकारात्मक होने की संकल्पनाएं लिए यथार्थ से पृथक भावनात्मक जंगल में भटकने लगती है। वास्तविक जीवन में अरुचि उसका परिवारिक मोहभंग,इंटरनेट के मोह में यकायक स्वाभाविक परिवर्तन,आंनद,बच्चों से विरक्ति भाव,मस्तिष्क में राजकुमार सैमुअल के प्रति आकर्षण, उसे प्राप्त करने की प्रबल महत्वकांक्षा,वाक्यावली वाली चैटिंग उसके पारिवारिक विखंडन का मुख्य कारण बन जाती है।विडियो कॉल्स से अतिउत्साहित हो उसे देखने की इच्छा,सैमुअल का महज़ लिखित सन्देश पर ही बात करना,संदेहास्पद स्थिति को जन्म देता है। चिड़चिड़ापन,कुंठा,मोबाइल टच पर भययुक्त भाव,बच्चों को पीटना,दुर्व्यवहार, रात्रि के अंतिम पहर तक ऑनलाइन,आवाज़ श्रवण की बेताबी, काल का डिस्कनेक्ट होना,उसका अनदेखे शख्स के पीछे का पागलपन की हदों तक पहुंचना कहानी को सार्थकता, रोमांचकारी बनता है।
ऑफलाइन मेरी दृष्टि में यथार्थ एवम् ऑनलाइन कृत्रिम जीवन का प्रतीक रूप में ठोस उदाहरण कहा जा सकता है।सैमुअल का शर्तिया तौर पर मिलना प्रमाणित करता है कि वह निसंदेह भ्रम,फरेब है।फटा पोस्टर निकली हीरोइन सी फिलिंग एवं सोशल मीडिया की तस्वीर प्रस्तुत कर छल कपट की भावना के सच को कहानीकार दर्शाता है। कहानी जिंदगी को धूर्वीकरण की ओर ले जाती है। समलैंगिक छवि दृष्टव्य करने के बाद पटल एकदम साफ़ दिखने लगता है। पति से तलाक के और बच्चों से विरक्ति ने उसके जीवन के समूल को नष्ट कर डाला। ‘इंतहा‘ पति वियोगिनी स्त्री मनोदशा,हृदय व्याकुलता,स्त्री मन के अनगिनत सवाल,शंकाएं, बुलबुलों भांति विचारों का उठना, विलीन हो जाना,विदेश में बसे पति मिलने की प्रबल इच्छा, अंतहीन प्रतीक्षा को सुगमतापूर्वक लेखक ने चित्रित किया है। प्रमुख कहानी जिसके शीर्षक से पुस्तक का नामकरण हुआ ‘एक कप चाय और तुम’ नायक सन्नी और नायिका वाणी है। प्रस्तुत कथा का देशकाल वातावरण क्रिसमस की शाम जिसे नायक अपने जीवन की चिरस्मृत शाम रूप में देखना चाहता है।वर्षों उसे इस शाम का इंतजार था।चाय पर मुलाकात,सेंता से विश में वाणी के सानिध्य की मुराद मांगना, रजमंदी रूप में उसका मौन हो पलकें झपका अमीन,स्वीकृत देना,भावाभिव्यक्ति की उच्छश्रृंखलता, एक कप चाय की आरजू। भाषा शब्दचयन पियरी कार्डिन का पेन, विश, विंड चाइम्स बेल, रिसीवर जैसे अंग्रेज़ी शब्दों का सार्थक प्रयोग है।जहां ‘बंद कॉटेज’ में स्टेटस, सोसायटी,रुतबा बरकरार रखने की कुंठाग्रस्त मन स्थिति,बुज़ुर्ग पीढ़ी की दुर्दशा को प्रकाश में लाने का प्रयास किया गया है। ‘सुखिया ‘ कथा के चारों भाग बाल मनोविज्ञान,जिज्ञासु बाल मन,नृत्य में रुचि, बाल मन की प्रश्नात्मक गूढ़ ज्ञान बातें तथा भारतीय समाज में अंधविश्वास,जातिवाद,शिक्षा ग्रहण करने पर भी सामाजिक रूढ़ियों में परिवर्तन न कर पाना आदि विषयों पर ये कहानियां कठोर प्रहार करती हैं। सुखिया के माध्यम से कई महत्वपूर्ण प्रश्नों को पाठकों के चिंतन कहानीकार छोड़ देते हैं,जो अध्ययनरत रहते वक़्त मस्तिष्क में चपला भांति कौंधते हुए विचारात्मक शक्ति संचारित करते हैं।जीवन की जटिलताओं,प्रवनचनाओं को कथाकार साहस के साथ कहते हैं साथ ही विभिन्न मतवाद परीक्षण, निरीक्षण, जातीय संकीर्णता,जटिलता,बर्बरतापूर्ण प्रवृतियों त्रासदी को रेखांकित करती हैं।
इन कहानियों को पढ़ते हुए स्मित मुस्कान भी चेहरे पर स्वत ही आ जाती है।लेखक भावावादी दृष्टिकोण को अपनाते हुए जीवन के जीवंत रूप की संवाहक कहानियां लिखते हैं। ‘खनकती आवाज़ ‘राजस्थानी भाषा शैली में अनजाने ही बने आत्मीय संबंध को उकेरने वाली साधारण कहानी है।’बिन पते की चिठ्ठियां’, संदेशवाहक के बिन मां की बच्ची को चिट्ठियों के माध्यम से ममत्व, मधुर रिश्तों में संवेदनशीलता,मानवीय रिश्तों के जीवित रहने का प्रमाण देती है।’छंटता कोहरा‘, ‘रत्ती भर धूप‘ प्राकृतिक सौंदर्य की अनुपम छटा बिखेरती, भौतिक वस्तओं के प्रति अपेक्षा भाव, प्रेम का गला घोंट, वैवाहिक संबंध को निभाते हुए भारतीय समाज में महिलाओं की अनमेल विवाह की समस्या, समर्पण के बाद भी वर्षों तक पुराने प्रेम की जहर बुझे तीर से कटाक्ष, अमृता प्रीतम की भांति विचारों में उत्कृष्टता, दृसंकल्पिता, पितृसत्तात्मक की परिधि से मुक्ति की छटपटाहट, पुरुष सम्पत्ति मां- बाप फिर भाइयों की नियमावली के मुताबिक़ चलना,अंत में पति का उसकी देह पर एकाधिकार हो जाना, कहीं ना कहीं स्त्री स्वयं की देह,अपने अस्तित्व की खोज में संलग्न प्रतिरोध क्षमता, दृढ़ निश्चयी, नजरअंदाजी, मर्यादित खींज,सामाजिक निर्धारित नियमावली को चुनौती देने लगती है। अपनी भावी पीढ़ी को सशक्त रूप में निर्मित देखने की अभिलाषा रखती है। अपने ऊपर थोप दिए गए पुरुष वर्चस्व की अपेक्षा कृत स्वयं की देह स्वामिनी बनना चाहती है। स्त्री तथ्यात्मक रंगो से अनुस्यूत कहानी है। पुरुष स्त्री प्रेम की गहराई को समझने में नाकामयाब ही होते- “हर किसी की जिंदगी में इमरोज़ नहीं होता। उसने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ टेबल पर रखी अमृता प्रीतम की किताब पर हाथ फेरते हुए कहा।”ये संवाद स्त्री मन की बहुत सी परतों को खोलता है।
मेरे दिल के करीब ‘आखिरी कॉल‘,‘रत्ती भर घूप’ , तीसरी कहानी इश्क़ ऑनलाइन रही है। मेरी दृष्टि में कहानी संग्रह में कोई कथा मील का पत्थर साबित हो सकती है तो वो ‘ रत्ती भर धूप’ ‘आख़िरी कॉल’ अथवा सुखिया, क्यों कि आत्मानुभूति से प्रसूत घटना है। ‘चुनावी मुद्दा’, शीर्षक से ही मूल कथा , आंचलिक परिवेश की दलित समाज की दयनीय दशा, आर्थिक रूप से कमज़ोर, नशे की लत के शिकार लोग, अशिक्षित, महिलाएं, गरीबी और वोट का शराब की बोतल, दो जून खाने, एक जोड़ी कपड़ों में सौदा तय होना, झूठी चुनावी घोषणाएं, लघु कथा की मूल संवेदना को व्यक्त करती है।’चौकीदार‘, आर्थिक स्थिति, बच्चों के अपहरण, बाल मन के अनजाने किये गए प्रश्नों को दर्शाती है। ‘वो रात’, लावारिस नवजात शिशुओं के प्रति लापरवाही, पुलिस जांच में पूछे गए मददगार इंसान से पेंचदा सवालात जिससे वो अपराधबोध महसूस करता है। मानवीय मूल्यों , नैतिकता, मानवीय धर्म जैसे भावात्मक पहलुओं का अवलोकन करती कहानी।’ डायरी 2011′ एक तरफ़ के प्रेम प्रसंग, सामान्यत किसी ओर से विवाह, शादी का कार्ड देख नायक की मनस्थिति को उजागर करती है। ‘सच का आइना’लाचार, गरीब, दयनीय दशा,करुणवरुणापूर्ण भावों ,जीवन की सत्य घटनाओं को ढालकर भयानक स्वप्न संसृत परिणति की गई है।
“एक कप चाय और तुम” (कथा-संग्रह) के भाव पक्ष में लेखक ने यथार्थवादी दृष्टिकोण,कल्पना का समावेश कर सशक्तता प्रकट की है। कथाएं लघु आकार,रोचकता, प्रभाविंति आदि विशेषताएं लिए है।पात्रों की भाव- भंगिमाओं को बहुविध प्रकृति के अनुरूप परिवर्तित किया गया है। कथाएं द्वंद्वग्रस्त,चेतनाओं,विचाराभिव्यक्ति, अभिधा शब्द शक्ति, सपाटबयानी में होने के बावजूद भी घटनाओं के गुंफन में कुतूहल,रहस्यमयता, विस्मयता धारण किए हैं। कथा प्रवाह में रसमयता अनवरत बनी रही है। सामाजिक जीवन की जटिलताओं,स्त्री मन की पैठ, प्रेमतत्व की महत्ता,तथ्यपरकता,अंतर्मन की व्याकुलता संत्रास के प्रति कहानीकार सुनील पंवार का परिपक्वतापूर्ण दृष्टिकोण देखने को मिलता है। भाषा सौष्ठव में काव्य शास्त्रीय सिद्धान्त की दृष्टि से थोड़ा बहुत दोष है किन्तु नवोदित लेखन एवं साहित्य विषय विशेष का ना होने के कारण सामान्य सी बात है।भाषा बिना अवरूद्ध हुए पाठक मन को सरसता तक ले जाती हैं।सरल,उर्दू फ़ारसी के शब्दों से जैसे-मशिवरा,अमीन,एतराज़,शब्बा खैर आदि। कहानियों में अंग्रेजी,राजस्थानी,खड़ी बोली के शब्दों का भी चयन किया गया साथ ही भाषा में नुकीलापन मधुर स्मृतियों का प्रत्यांकन है।साहित्यिक रुचि विशेषत:कथाओं के प्रति अदम्य लगाव,आत्मनिष्ठता के साथ श्रृंखलाबद्ध रूप में कालक्रम,देशकाल,वातावरण,स्थिति का पर्यवेक्षण करते हुए,सजीव दृश्यों,चित्रों का प्रत्यांकन है।भाषा शैली अभिधा,सहजता और तथ्यात्मकता है। शिल्प की दृष्टि से भी उत्तम कहानी संग्रह है।
डॉ. राजकुमारी
सहायक प्रवक्ता
संपादक:- द वर्ड्स ब्रीज़